नया H1-B वीजा विधेयक: भारत को होने वाले 5 नुकसान

H1-B वीजा एक गैर-अप्रवासी वीजा है जो संयुक्त राज्य अमेरिका में काम करने के लिए आने वाले विदेशी मूल के कामगारों को दिया जाता है. यूएस इमिग्रेशन एक्ट, 1990 के अनुसार, 65,000 विदेशी नागरिक प्रत्येक वित्तीय वर्ष में H-1B वीजा प्राप्त कर सकते हैं। 20000 एच -1 बी के अलावा, उन विदेशी छात्रों के लिए उपलब्ध हैं, जिन्होंने अमेरिकी विश्वविद्यालयों से मास्टर या उच्चतर डिग्री पूरी की है. नये वीज़ा बिल एक अनुसार अमेरिका आने वाले कर्मचारियों का न्यूनतम वेतन 60,000 से 1 लाख डॉलर करने का प्रस्ताव है.

H1-B वीजा क्या है? (What is H1B Visa )

H1-B एक गैर-अप्रवासी वीजा है जो कि संयुक्त राज्य अमेरिका में आव्रजन और राष्ट्रीयता अधिनियम की धारा 101 (15) के तहत दिया जाता है। यह वीजा अमेरिकी कम्पनियों को विभिन्न व्यवसायों में विदेशी कामगारों को अस्थायी रूप से अमेरिका में रोजगार देने की अनुमति देता है। मौजूदा अमेरिकी कानून के मुताबिक एक वित्तीय वर्ष में अधिकतम 65,000 विदेशी नागरिकों को H1-B वीजा दिया जा सकता है।
अभी H1-B  वीज़ा कार्यक्रम के तहत अमेरिका स्थित कंपनियां वर्ष में 85,000 विदेशी कामगारों को रोजगार देतीं है जिसमे 65,000 लोग विदेशों से बुलाये जाते हैं और 20,000 वो लोग होते हैं जो कि अमेरिका में पढाई करने आते हैं|

नये राष्ट्रपति ट्रम्प की मुख्य चिंता यह है कि अमेरिका की नौकरियों पर हक़ सिर्फ अमेरिका के लोगों का होना चाहिए इसी कारण ट्रम्प प्रशासन इस कानून में परिवर्तन कर विदेशी कर्मचारियों के लिए इस वीज़ा की शर्तों को कठिन करने के लिए एक नया बिल अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में लाया है| इस बिल में प्रतिवर्ष जारी किये जाने वाले H1-B  वीज़ा की संख्या को कम किया जा सकता है और H1-B  वीज़ा के लिए ली जाने वाली फीस को भी दुगुना किया जा सकता है |
H1-वीज़ा शुल्क (H1-B filing fee) कितना देना होगा?
यह शुल्क नौकरी देने वाली कंपनी के आकार पर निर्भर करता है क्योंकि इस शुल्क का बड़ा हिस्सा कम्पनी को ही देना पड़ता है|इस प्रकार H1-B वीज़ा शुल्क $1,600 से लेकर $7,400+अटार्नी शुल्क (यदि हो तो) देना पड़ता है| नये बिल में सरकार इस फीस को दुगुना कर सकती है |
भारत की आईटी इंडस्ट्री का आकार क्या है?
पिछले तीन दशकों में भारतीय आईटी इंडस्ट्री 140 अरब डॉलर (9540 अरब डॉलर) की हो गई है | भारतीय आईटी कंपनियों का आधा व्यापार अमेरिका और एक चौथाई यूरोप से होता है| हालांकि इसकी सफलता के पीछे अमीर देशों की कंपनियों द्वारा भारत में उपलब्ध सस्ते आईटी प्रोफेशनल्स को काम पर लगाना है| ज्ञातव्य है कि भारतीय और विदेशी कम्पनियाँ भारत के पढ़े लिखे इंजिनीरिंगग्रेजुएट्स को तीन-साढ़े तीन लाख रुपये (लगभग 5500 डॉलर) प्रतिवर्ष के वेतन पर नियुक्त कर लेती हैं| ये कर्मचारी थोडा अनुभव प्राप्त कर यूरोप और अमेरिका में तैनात कर दिए जाते हैं जबकि इनके साथ काम करने वाले इसी देश के कर्मचारी भारी सैलरी पर नियुक्त किये जाते हैं|

Comments